काम में अपने ज़ुहूर-ए-हक़ है आप
काम में अपने ज़ुहूर-ए-हक़ है आप
हज़रत-ए-आदम के तो माँ थी न बाप
उन को दे कुछ, मत ज़राफ़त उन से कर
ले न ऐ नादाँ अतीतों के शराप
हम तही-दस्ती में भी कुछ कम नहीं
हाथ में राजा के हो सोने की छाप
आह-ओ-नाले का समझ टुक ज़ेर-ओ-बम
सख़्त मुश्किल इन सुरों की है अलाप
हर कोई चाहेगा अपनी मग़फ़िरत
हश्र में सब को पड़ेगी आपा-धाप
'मुसहफ़ी' मत उस के कूचे से निकल
जब तलक दम है ज़मीं तू वाँ की नाप
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