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जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता - Darsaal

जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक

जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक

क्यूँ छेड़ती है तू मुझे ना-आश्ना सरक

जैसे अँधेरी रात में बिजली चमक गई

उस रुख़ से शब गई जो वो ज़ुल्फ़-ए-दोता सरक

आसार-ए-मर्ग मुझ में हुवैदा हुए मगर

जब पास से गए मिरे सब आश्ना सरक

कहता है वक़्त-ए-नज़'अ मरीज़ उस का उस से यूँ

लगने दे मेरी आँख तू इस दम ज़रा सरक

मय्यत से मेरी गुज़रे है जिस दम वो ब'अद-ए-क़त्ल

लाशा कहे है ख़ून से दामन बचा सरक

पोरों पे डोरे बाँधे हैं उस पर शुऊर ने

ता उस के फ़ुंदुक़ों की न जावे हिना सरक

शब इख़्तिलात से वो मिरे क्या ख़फ़ा हुआ

हद से गई ज़ियादा जो अंगुश्त-ए-पा सरक

धड़के है बे-तरह से ये पहलू में रात दिन

डरता हूँ ज़ख़्म-ए-दिल की न जावे दवा सरक

करने दे मेरे ख़ून को आराम ख़ाक में

ऐ शोर-ए-हश्र उस को अभी मत जगा सरक

ये क्या ग़ज़ब हुआ कि न ख़ंजर लगा न तीर

पहलू से आफी आप मिरा दिल गया सरक

ख़्वाब-ए-अदम से मैं अभी चौंका हूँ दूर हो

ऐ सुब्ह-ए-ग़म न अपना मुझे मुँह दिखा सरक

पीछे मिरे पड़ा है तू क्यूँ घर की राह ले

रुस्वा करे गा क्या मुझे बहर-ए-ख़ुदा सरक

क्या बे-हया है जो नहीं टलता तू 'मुसहफ़ी'

सौ बार मैं ने तुझ को दिवाने कहा सरक

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.