इस मर्ग को कब नहीं मैं समझा

इस मर्ग को कब नहीं मैं समझा

हर दम दम-ए-वापसीं मैं समझा

अंदाज़ तिरा बस अब न कर शोर

ऐ नाला-ए-आतिशीं मैं समझा

तब मुझ को अजल हुई गवारा

जब ज़हर को अंग्बीं मैं समझा

इक ख़ल्क़ की सरनविश्त बाँची

अपना न ख़त-ए-जबीं मैं समझा

जूँ शाना कभू तह-ए-पेँच तेरे

ऐ काकुल-ए-अम्बरीं मैं समझा

क्या फ़ाएदा आह-ए-दम-ब-दम से

है दर्द-ए-दिल-ए-हज़ीं मैं समझा

फिर इस में न शक ने राह पाई

जिस बात को बिल-यक़ीं मैं समझा

जब उठ गई ज़िद तो हर सुख़न में

समझा तो कहीं कहीं मैं समझा

मू-ए-कमर उस का क्या है ऐ अक़्ल

समझा तू मुझे नहीं मैं समझा

लिक्खी ग़ज़ल इस में 'मुसहफ़ी' जल्द

जिस को कि नई ज़मीं मैं समझा

(324) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.