हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
पर किस को दिल ओ दिमाग़ है ये
है बूँद अरक़ की ज़ुल्फ़ के बीच
या गौहर-ए-शब चराग़ है ये
क्या लाले को निस्बत अपने दिल से
यानी कि तमाम दाग़ है ये
दर-गुज़रे हम ऐसी ज़िंदगी से
दुनिया में अगर फ़राग़ है ये
फिर इतनी दरंग क्या है साक़ी
मय है ये और अयाग़ है ये
ऐसा गया 'मुसहफ़ी' जहाँ से
यारो मिरे दिल पे दाग़ है ये
जो फिर न कहा किसू ने इतना
उस गुम-शुदा का सुराग़ है ये
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