हमें नित असीर-ए-बला चाहता है
हमें नित असीर-ए-बला चाहता है
हमारी ख़ुशी कब ख़ुदा चाहता है
शब ओ रोज़ रोया करें ख़ून आँखें
यही तो वो रंग-ए-हिना चाहता है
वो करता है अपने ही जी में बुराई
किसी का कोई गर बुरा चाहता है
दिला बैठ रह रख के दंदाँ जिगर पर
तवक्कुल का गर तू मज़ा चाहता है
इसे आप से ध्यान आने का तेरे
वो गुल तुझ को बाद-ए-सबा चाहता है
मिरे उस्तुखाँ से भी है उस को नफ़रत
मरे फ़ाक़ा कर के हुमा चाहता है
नहीं ख़्वाहिश उस की खुली हम पे अब तक
वो क्या माँगता है वो क्या चाहता है
मगर ये कि इन रोज़ों फिर 'मुसहफ़ी' को
तिरे ग़म में सौदा हुआ चाहता है
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