दूकान-ए-मय-फ़रोश पे गर आए मोहतसिब

दूकान-ए-मय-फ़रोश पे गर आए मोहतसिब

दिन ईद के तो ख़ूब घड़ा जाए मोहतसिब

ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-गर ये रवा है कि हर बरस

सहबा-कशों पे बाज की ठहराए मोहतसिब

मस्तों ने संगसार क्या उस को बार-हा

लेकिन गया न उस पे भी सौदा-ए-मोहतसिब

हाथों से उस के शीशा-ए-दिल चूर है मिरा

या-रब किए की अपने सज़ा पाए मोहतसिब

ये कू-ए-मय-फ़रोश में रौला हुआ कि रात

दहशत से वाँ ठहर न सका पा-ए-मोहतसिब

मस्त-ए-शराब-ए-इश्क़ को बाज़ार-ए-दहर में

ज़िन्हार बीम-ए-शहना न परवा-ए-मोहतसिब

कुछ दे के रिश्वत उस को तू पी 'मुसहफ़ी' शराब

सब ज़र के वास्ते है ये ग़ौग़ा-ए-मोहतसिब

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.