बस हम हैं शब और कराहना है
बस हम हैं शब और कराहना है
ये और तरह का चाहना है
है वादा-ए-वस्ल आज मुझ को
अस्बाब-ए-तरब बसाहना है
हैं नावक-ए-ग़म्ज़ा गरचे कारी
मेरा ही जिगर सराहना है
दुनिया है सरा-ए-फ़ानी इस में
जो आया है याँ सो पाहना है
चितवन में कहे है यूँ वो मग़रूर
तुझ से मुझे क्या निबाहना है
ऐ 'मुसहफ़ी' दिल रहा है पीछे
उस को भी ज़रा निबाहना है
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