बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी
बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी
इस चमन की बहार फिर चमकी
तू ने फिर इस को सान पर रक्खा
तेरे ख़ंजर की धार फिर चमकी
मेरे गिर्ये से आब-ओ-ताब आया
सूरत-ए-रोज़गार फिर चमकी
ख़ून-ए-आशिक़ से वो ज़ह-ए-दामन
दम-ए-शमशीर वार फिर चमकी
देखियो पाँव रख दिया किस ने
आज क्यूँ नोक-ए-ख़ार फिर चमकी
वो जो इक टीस सी है दिल में मिरे
रह के बे-इख़्तियार फिर चमकी
'मुसहफ़ी' की जो तू ने दर-रेज़ी
शायरी तेरी यार फिर चमकी
(316) Peoples Rate This