बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए
बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए
आ गया याद तो इक बार हँसे और रोए
शेर-ए-तर पढ़ने से यारों में हमें क्या हासिल
मगर इतना है कि दो-चार हँसे और रोए
शादी ओ ग़म की जो उठ जाए जहाँ से रह-ओ-रस्म
फिर तो कोई भी न ज़न्हार हँसे और रोए
ना-तवानी ने किया उस को तो नक़्श-ए-क़ालीं
क्या तिरी चश्म का बीमार हँसे और रोए
'मुसहफ़ी' रात में अफ़्साना-ए-दिल कहता था
सुन के हम-साए कई बार हँसे और रोए
(317) Peoples Rate This