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आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता - Darsaal

आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना

आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना

लाज़िम है पासबाँ से अब हम को साज़ करना

गर हम मुशीर होते अल्लाह के तो कहते

यानी विसाल की शब या रब दराज़ करना

उस का सलाम मुझ से अब क्या है गर्दिश-ए-रौ

तिफ़्ली में मैं सिखाया जिस को नमाज़ करना

अज़-बस-कि ख़ून दिल का खाता है जोश हर दम

मुश्किल हुआ है हम को इख़्फ़ा-ए-राज़ करना

बा-यक-नियाज़ उस से क्यूँकर कोई बर आवे

आता हो सौ तरह से जिस को कि नाज़ करना

करते हैं चोट आख़िर ये आहुआन-ए-बदमस्त

आँखों से उस की ऐ दिल टुक एहतिराज़ करना

ऐ आह उस के दिल में तासीर हो तो जानूँ

है वर्ना काम कितना पत्थर गुदाज़ करना

होवेगी सुब्ह रौशन इक दम में वस्ल की शब

बंद-ए-क़बा को अपने ज़ालिम न बाज़ करना

ऐ 'मुसहफ़ी' हैं दो चीज़ अब यादगार-ए-दौराँ

उस से तू नाज़ करना मुझ से नियाज़ करना

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.