Ghazals of Mushafi Ghulam Hamdani
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
ज़ुल्मात-ए-शब-ए-हिज्र की आफ़ात है और तू
ज़ुल्फ़ों का बिखरना इक तो बला, आरिज़ की झलक फिर वैसी ही
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
ये जो अपने हाथ में दामन सँभाले जाते हैं
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
ये आँखें हैं तो सर कटा कर रहेंगी
या-रब मिरी उस बुत से मुलाक़ात कहीं हो
या-रब आबाद होवें घर सब के
यार हैं चीं-बर-जबीं सब मेहरबाँ कोई नहीं
यक नाला-ए-आशिक़ाना है याँ
यादगार-ए-गुज़िश्तगाँ हैं हम
या थी हवस-ए-विसाल दिन रात
वो दर तलक आवे न कभी बात की ठहरे
वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम
वो चहचहे न वो तिरी आहंग अंदलीब
वो आरज़ू न रही और वो मुद्दआ न रहा
वहशत है मेरे दिल को तो तदबीर-ए-वस्ल कर
वहीं थे शाख़-ए-गुल पर गुल जहाँ जम्अ
वही रातें आएँ वही ज़ारियाँ
वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
उस ने कर वसमा जो फ़ुंदुक़ पे जमाई मेहंदी
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का
उस रश्क-ए-मह की याद दिलाती है चाँदनी
उस गली में जो हम को लाए क़दम
उस बुत को नहीं है डर ख़ुदा से
उम्र-ए-पस-माँदा कुछ दलील सी है
तूर पर अपने किसी दिन भी ख़ुर-ओ-ख़्वाब है याँ