Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 15)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
गोया गिरह बहाने की एक उस पे थी लगी
गो ज़ख़्मी हैं हम पर उसे क्या ग़म है हमारा
गो मैं बुतों में उम्र को काटा तो क्या हुआ
गो कि तू 'मीर' से हुआ बेहतर
गो भूल गया हूँ मैं तुझे तो भी तिरा रंग
गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
ग़ुबार-ए-दिल को में मिज़्गान-ए-यार से झाड़ा
ग़ज़ल ऐ 'मुसहफ़ी' ये 'मीर' की है
घटती है शब-ए-वस्ल तो कहता हूँ मैं या-रब
घर में बाशिंदे तो इक नाज़ में मर जाते हैं
ग़बग़ब से बचा दिल तो ज़ख़ंदान में डूबा
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
गर ज़माने की अदावत है यही मुझ से तो मैं
गर ये आँसू हैं तो लाख आवेंगे दरिया जोश में
गर समझते वो कभी मअनी-ए-मत्न-ए-क़ुरआँ
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
गर मज़ा चाहो तो कतरो दिल सरौते से मिरा
गर ख़ाक से हमारी पुतला कोई बनावे
गर जोश पे टुक आया दरियाव तबीअत का
गर देखिए तो आईना-ए-क़द-नुमा की शक्ल
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
गली में उस की हुई हल्क़ याँ तक आसूदा
गह तीर मारता है गह संग फेंकता है
गए हैं यार अपने अपने घर दालान ख़ाली है
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
फ़रियाद को मजनूँ की सुने कौन जहाँ हों
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
ए'तिबारात हैं ये हस्ती-ए-मौहूमी के
एक नाले पे है मआश अपनी
इक जाम-ए-मय की ख़ातिर पलकों से ये मुसाफ़िर