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मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी Couplets In Hindi - Best मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी Couplets Shayari & Poems - Page 11 - Darsaal

Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 11)

Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 11)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब

ख़ाना-ए-दिल पे बिना अर्श की तू रख तो सही

ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिन

ख़ाक-ए-आग़श्ता-ब-ख़ूँ को मिरी बे-क़द्र न जान

कौन कहता है कि फिर ख़ाक से उठते हैं शहीद

कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख

कशिश ने इश्क़ की क्या काम कुछ किया थोड़ा

काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल

करता हूँ सवाल जिस के दर पर

कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ

कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को

कर के सदक़े रख दिया दिल यूँ मैं उस की राह में

काँटा हुआ हूँ सूख के याँ तक कि अब सुनार

कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द

कल सू-ए-ग़ैर उस ने कई बार की निगाह

कल क़ाफ़िला-ए-निक्हत-ए-गुल होगा रवाना

कैसी फ़रफ़र ज़बान चलती है

कैसा ये दिन है जो नहीं लाता है रू-ब-शाम

कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब

कहते हो एक-आध की है मेरे हाथों मौत

कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा

कहीं देखा है इस हैअत का माशूक़

कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार

काफ़िर मुझे न कहियो ऐ मोमिनान-ए-सादिक़

काबा ओ दैर में ढूँडे जो कहीं ले के चराग़

कब शब-ए-वस्ल वो आया कि मिरे और उस के

काम क्या है प नहीं चाहती हिम्मत हरगिज़

काम अज़-बस-कि ज़माने का हुआ है बर-अक्स

जो तू ऐ 'मुसहफ़ी' रातों को इस शिद्दत से रोवेगा

जो शम्अ है काबे की वही नूर का शोअ'ला

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