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Mushafi Ghulam Hamdani Poetry In Hindi - Best Mushafi Ghulam Hamdani Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Page 9 - Darsaal

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 9)

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 9)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

मय पीने से वो आरिज़ क्या और हो गए थे

महरूम है नामा-दार-ए-दुनिया

माह की आँख जो रहती है लगी ऊधर ही

मग़रिब में उस को जंग है क्या जाने किस के साथ

मादर-ए-दहर उठाती है जो हर दम मिरे नाज़

लुट के मंज़िल से कोई यूँ तो न आया होगा

लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है

लिया मैं बोसा ब-ज़ोर उस सिपाही-ज़ादे का

ले क़ैस ख़बर महमिल-ए-लैला तो न होवे

ले लिया प्यार से अक्स अपने का झुक कर बोसा

ले गया काजल चुरा दुज़्द-ए-हिना

ले चली है जो दिल तो ज़ुल्फ़-ए-दराज़

लाख हम शेर कहें लाख इबारत लिक्खें

लैला चली थी हज के लिए जज़्ब-ए-इश्क़ से

लहरों का थरथराना क्यूँ-कर पसंद आवे

लग रही है ख़ाना-ए-दिल को हमारे आग हाए

लब बंद ही रक्खो, नहीं फिर और करेगा

क्यूँकर न तुझे दौड़ के छाती से लगा लूँ

क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी'

क्यूँ नीची नज़रें कर लीं मियाँ ये तो तू बता

क्या वो भी चाव-चूज़ के दिन थे कि जिन दिनों

क्या तअज्जुब है अगर फिर के हो अहया मेरा

क्या रेख़्ता कम है 'मुसहफ़ी' का

क्या नाज़ुकी बदन की उस रश्क-ए-गुल के कहिए

क्या क्या बदन-ए-साफ़ नज़र आते हैं हम को

क्या किया उस का किसू ने बाग़ से जाती रही

क्या काम किया तुम ने थी ये भी अदा कोई

क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत

क्या जानिए चमन में क्या ताज़ा गुल खिला हो

क्या जाने क्या करेगा ये दीदार देखना

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