मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 7)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
'मुसहफ़ी' होता मुसलमान जो मुझ सा काफ़िर
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
'मुसहफ़ी' गरचे ये सब कहते हैं हम से बेहतर
'मुसहफ़ी' फ़ारसी को ताक़ पे रख
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
मूसा ने कोह-ए-तूर पे देखा जो कुछ वही
मुल्हिद हूँ अगर मैं तो भला इस से तुम्हें क्या
मुझ से जो मेरी ज़ोहरा मिलती नहीं है अब तक
मुझ को ये सोच है जीते हैं वे क्यूँ-कर या-रब
मुझ को पामाल कर गया है वही
मुहताज-ए-ज़ेब-ए-आरियती कब है ज़ात-ए-बह्त
मुफ़्लिस के दिए की सी तिरा दाग़-ए-दिल अपना
मु-ए-जुज़ 'मीर' जो थे फ़न के उस्ताद
मिज़्गाँ-ज़दन से कम है ज़मान-ए-नमाज़-ए-इश्क़
मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
मिला है आशिक़ी में रुतबा-ए-पैग़म्बरी मुझ को
मेरे दिल-ए-शिकस्ता को कहती है देख ख़ल्क़
मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन
मिरा सलाम वो लेता नहीं मगर समझा
मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू
मेहनत पे टुक नज़र कर सूरत गर अज़ल ने
मज़े में अब तलक बैठा मैं अपने होंठ चाटूँ हूँ
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
मातम में फ़ौत-ए-उम्र के रोता हूँ रात दिन
मत गोर-ए-ग़रीबाँ पर घोड़े को कुदाओ यूँ
मरते मरते इसी बुत का मुझे कलमा पढ़ना
मर्ग की देखते ही शक्ल गए भाग हवास
मारे हया के हम से वो कल बोलता न था
मार नहिं डालते हैं यूँ उस को
मर जाऊँगा मैं या वही जावेगा मुझे मार