मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 28)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
बाग़ था उस में आशियाँ भी था
बचा गर नाज़ से तो उस को फिर अंदाज़ से मारा
बात को मेरी अलग हो के न शरमाओ सुनो
ब'अद-ए-मुर्दन की भी तदबीर किए जाता हूँ
अज़-बस-कि जी है तुझ बिन बेज़ार ज़िंदगी से
अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को
अव्वल तो ये धज और ये रफ़्तार ग़ज़ब है
अव्वल तो तिरे कूचे में आना नहीं मिलता
अक़्ल गई है सब की खोई क्या ये ख़ल्क़ दिवानी है
अपना रफ़ीक़-ओ-आश्ना ग़ैर-ए-ख़ुदा कोई नहीं
ऐसे डरे हैं किस की निगाह-ए-ग़ज़ब से हम
ऐ शब हिज्र कहीं तेरी सहर है कि नहीं
ऐ इश्क़ तेरी अब के वो तासीर क्या हुई
ऐ ग़म-ज़दा ज़ब्त कर के चलना
अहल-ए-दिल गर जहाँ से उठता है
अभी अपने मर्तबा-ए-हुस्न से मियाँ बा-ख़बर तू हुआ नहीं
अब मुझ को गले लगाओ साहिब
आतिश-ए-ग़म में बस कि जलते हैं
आता है यही जी में फ़रियाद करूँ रोऊँ
आता है किस अंदाज़ से टुक नाज़ तो देखो
आशिक़ तो मिलेंगे तुझे इंसाँ न मिलेगा
आशिक़ कहें हैं जिन को वो बे-नंग लोग हैं
आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना
आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
आँखें हैं जोश-ए-अश्क से पनघट
आना है यूँ मुहाल तो इक शब ब-ख़्वाब आ
आज पलकों को जाते हैं आँसू
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
आह हमराज़ कौन है अपना
आह देखी थी मैं जिस घर में परी की सूरत