मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 27)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
दिलबर की तमन्ना-ए-बर-ओ-दोश में मर जाए
दिल सीने में बेताब है दिलदार किधर है
दिल में मुर्ग़ान-ए-चमन के तो गुमाँ और ही है
दिल में है उस के मुद्दई का इश्क़
दिल को ये इज़्तिरार कैसा है
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
दिल के नगर में चार तरफ़ जब ग़म की दुहाई बैठ गई
दिल चुराना ये काम है तेरा
देख उस को इक आह हम ने कर ली
देख कर इक जल्वे को तेरे गिर ही पड़ा बे-ख़ुद हो मूसा
दरिया-ए-आशिक़ी में जो थे घाट घाट साँप
दर तलक जाने की है उस के मनाही हम को
दर तलक आ के टुक आवाज़ सुना जाओ जी
दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं
छुरियाँ चलीं शब दिल ओ जिगर पर
चश्म ने की गौहर-अफ़्शानी सरीह
चले ले के सर पर गुनाहों की गठरी
चखी न जिस ने कभी लज़्ज़त-ए-सिनान-ए-निगाह
बुलबुलो बाग़बाँ को क्यूँ छेड़ा
बोइए मज़रा-ए-दिल में जो इनायात के बीज
बिकते हैं शहर में गुल-ए-बे-ख़ार हर तरफ़
भरी आती हैं हर घड़ी आँखें
बे-लाग हैं हम हम को रुकावट नहीं आती
बज़्म-ए-सुरूद-ए-ख़ूबाँ में गो मर्दनगीं शाहीन बजीं
बस हम हैं शब और कराहना है
बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी
बंद भी आँखों को ज़री कीजिए
बनाया एक काफ़िर के तईं उस दम मैं दो काफ़िर
बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए
बहस उस की मेरी वक़्त-ए-मुलाक़ात बढ़ गई