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Mushafi Ghulam Hamdani Poetry In Hindi - Best Mushafi Ghulam Hamdani Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Page 25 - Darsaal

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 25)

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 25)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

कब लग सके जफ़ा को उस की वफ़ा-ए-आलम

कब ख़ूँ में भरा दामन-ए-क़ातिल नहीं मालूम

काम में अपने ज़ुहूर-ए-हक़ है आप

जूँ ही ज़ंजीर के पास आए पाँव

जो परी भी रू-ब-रू हो तो परी को मैं न देखूँ

जो दम हुक़्क़े का दूँ बोले कि ''मैं हुक़्क़ा नहीं पीता''

जीता रहूँ कि हिज्र में मर जाऊँ क्या करूँ

जी से मुझे चाह है किसी की

जाते जाते राह में उस ने मुँह से उठाया जूँही पर्दा

जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे

जल्वा-गर उस का सरापा है बदन आइने में

जलता है जिगर तो चश्म नम है

जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं होता

जब तक कि तिरी गालियाँ खाने के नहीं हम

जब से साने ने बनाया है जहाँ का बहरूप

जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत

जब कि बे-पर्दा तू हुआ होगा

जब घर से वो बाद-ए-माह निकले

जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक

इस क़दर भी तो मिरी जान न तरसाया कर

इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं

इस मर्ग को कब नहीं मैं समझा

इस इश्क़ ओ जुनूँ में न गरेबान का डर है

इस गुलशन-ए-पुर-ख़ार से मानिंद-ए-सबा भाग

इस गोशा-ए-उज़्लत में तन्हाई है और मैं हूँ

इन आँखों से आब कुछ न निकला

इधर से झाँकते हैं गह उधर से देख लेते हैं

हूँ शैख़ मुसहफ़ी का मैं हैरान-ए-शाएरी

हम तो उस कूचे में घबरा के चले आते हैं

हम दिल को लिए बर-सर-ए-बाज़ार खड़े हैं

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