मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 24)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
लगते हैं नित जो ख़ूबाँ शरमाने बावले हैं
क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है
क्या मैं जाता हूँ सनम छुट तिरे दर और कहीं
क्या खींचे है ख़ुद को दूर अल्लाह
क्या दख़्ल किसी से मरज़-ए-इश्क़ शिफ़ा हो
क्या चमके अब फ़क़त मिरी नाले की शायरी
कुछ अपनी जो हुर्मत तुझे मंज़ूर हो ऐ शैख़
किस राह गया लैला का महमिल नहीं मालूम
कीजिए ज़ुल्म सज़ा-वार-ए-जफ़ा हम ही हैं
किधर जाइए और कहाँ बैठिए
किबरियाई की अदा तुझ में है
की आह हम ने लेकिन उस ने इधर न देखा
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
ख़्वाब था या ख़याल था क्या था
ख़ुश-तालई में शम्स ओ क़मर दोनों एक हैं
ख़ुदा की क़सम फिर तो क्या ख़ैर होवे
खेल जाते हैं जान पर आशिक़
ख़रीदार अपना हम को जानते हो
खड़ा न सुन के सदा मेरी एक यार रहा
खा लेते हैं ग़ुस्से में तलवार कटारी क्या
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
कल तो खेले था वो गिली डंडा
कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा
कहती है नमाज़-ए-सुब्ह की बाँग
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई
कह गया कुछ तो ज़ेर-ए-लब कोई
कभू तक के दर को खड़े रहे कभू आह भर के चले गए
कभी वफ़ाएँ कभी बेवफ़ाइयाँ देखीं
कभी तो बैठूँ हूँ जा और कभी उठ आता हूँ
कब सबा सू-ए-असीरान-ए-क़फ़स आती है