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Mushafi Ghulam Hamdani Poetry In Hindi - Best Mushafi Ghulam Hamdani Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Page 22 - Darsaal

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 22)

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 22)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

शब-ए-हिज्र सहरा-ए-ज़ुल्मात निकली

शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक

शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह

शब हम को जो उस की धुन रही है

सौ बार तुम तो सामने आ कर चले गए

सरासर ख़जलत-ओ-शर्मिंदगी है

सर अपने को तुझ पर फ़िदा कर चुके हम

सामने आँखों के हर दम तिरी तिमसाल है आज

सैराब आब-ए-जू से क़दह और क़दह से हम

सदा फ़िक्र-ए-रोज़ी है ता ज़िंदगी है

रुख़ ज़ुल्फ़ में बे-नक़ाब देखा

रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया

रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप

रहमत तिरी ऐ नाक़ा-कश-ए-महमिल-ए-हाजी

रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला

रात के रहने का न डर कीजिए

रात करता था वो इक मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार से बहस

फिर ये कैसा उधेड़-बुन सा लगा

पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले

पस-ए-क़ाफ़िला जो ग़ुबार था कोई उस में नाक़ा-सवार था

परेशाँ क्यूँ न हो जावे नज़ारा

पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ

पाँव में क़ैस के ज़ंजीर भली लगती है

पहलू में रह गया यूँ ये दिल तड़प तड़प कर

पढ़ न ऐ हम-नशीं विसाल का शेर

ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल

ने ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ हूँ न हल्क़-ए-बुरीदा हूँ

ने शहरियों में हैं न बयाबानियों में हम

ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है

नज़र क्या आए ज़ात-ए-हक़ किसी को

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