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Mushafi Ghulam Hamdani Poetry In Hindi - Best Mushafi Ghulam Hamdani Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Page 21 - Darsaal

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 21)

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 21)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

उस रश्क-ए-मह की याद दिलाती है चाँदनी

उस गली में जो हम को लाए क़दम

उस बुत को नहीं है डर ख़ुदा से

उम्र-ए-पस-माँदा कुछ दलील सी है

तूर पर अपने किसी दिन भी ख़ुर-ओ-ख़्वाब है याँ

तुम्हारी और मिरी कज-अदाइयाँ ही रहीं

तुम गर्म मिले हम से न सरमा के दिनों में

तुम भी आओगे मिरे घर जो सनम क्या होगा

तुम बाँकपन ये अपना दिखाते हो हम को क्या

टुकड़ा जहाँ गिरा जिगर-ए-चाक-चाक का

तुझ से गर वो दिला नहीं मिलता

तुझ बिन तो कभी गुल के तईं बू न करूँ मैं

तू देखे तो इक नज़र बहुत है

था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता

तिरे मुँह छुपाते ही फिर मुझे ख़बर अपनी कुछ न ज़री रही

तिरा शौक़-ए-दीदार पैदा हुआ है

तसव्वुर तेरी सूरत का मुझे हर शब सताता है

तरसा न मुझ को खींच के तलवार मार डाल

तरह ओले की जो ख़िल्क़त में हम आबी होते

तमाशे की शक्लें अयाँ हो गई हैं

तख़्ता-ए-आब-ए-चमन क्यूँ न नज़र आवे सपाट

सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ

सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है

सोहबत है तिरे ख़याल के साथ

सीना है पुर्ज़े पुर्ज़े जा-ए-रफ़ू नहीं याँ

सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो

शेर क्या जिस में नोक-झोक न हो

शेर दौलत है कहाँ की दौलत

शब-ए-हिज्राँ थी मैं था और तन्हाई का आलम था

शब-ए-हिज्र सहरा-ए-ज़ुल्मात निकली

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