मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी (page 20)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
आई जो रूह-ए-लैला ज़ियारत को क़ैस की
आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा
आदमी से आदमी की जब न हाजत हो रवा
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
ज़ुल्मात-ए-शब-ए-हिज्र की आफ़ात है और तू
ज़ुल्फ़ों का बिखरना इक तो बला, आरिज़ की झलक फिर वैसी ही
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
ये जो अपने हाथ में दामन सँभाले जाते हैं
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
ये आँखें हैं तो सर कटा कर रहेंगी
या-रब मिरी उस बुत से मुलाक़ात कहीं हो
या-रब आबाद होवें घर सब के
यार हैं चीं-बर-जबीं सब मेहरबाँ कोई नहीं
यक नाला-ए-आशिक़ाना है याँ
यादगार-ए-गुज़िश्तगाँ हैं हम
या थी हवस-ए-विसाल दिन रात
वो दर तलक आवे न कभी बात की ठहरे
वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम
वो चहचहे न वो तिरी आहंग अंदलीब
वो आरज़ू न रही और वो मुद्दआ न रहा
वहशत है मेरे दिल को तो तदबीर-ए-वस्ल कर
वहीं थे शाख़-ए-गुल पर गुल जहाँ जम्अ
वही रातें आएँ वही ज़ारियाँ
वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
उस ने कर वसमा जो फ़ुंदुक़ पे जमाई मेहंदी
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का