किसी का नाम न लूँ और ग़ज़ल के पर्दे में
बयान उस की मैं सारी सिफ़ात भी कर लूँ
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अब किसी को देख कर इक सम्त मुड़ जाते हैं हम
दर्द का नाम पता मत पूछो
सवानेह-उम्री
वक़्त की रेल गाड़ी
आती जाती साँस कैसे तेरे ग़म से मन गई
ज़िक्र तेरा करेंगे फिर तुझ से
देखा नहीं उस को कितने दिन से
याद फिर आई तिरी मौसम सलोना हो गया
जो बीती है जो बीतेगी सब अफ़्साने लगे हम को
चाँद ने अपना दीप जलाया शाम बुझी वीराने में
मेरी दुनिया