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सहरा सहरा - मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी कविता - Darsaal

सहरा सहरा

मैं क्यूँ इक कमरे में इक कुर्सी पर बैठा

अपने अंदर चलते चलते थक जाता हूँ

बचपन की तस्वीरें यादें

घुटने में जो चोट लगी थी

हाथ से मिट्टी छान के बहते ख़ून को कैसे रोक लिया था

वो मकतब, कॉलेज, दफ़्तर, घर

ऊबड़-खाबड़ रस्ते

गिरते-पड़ते क्या बतलाऊँ

कैसे अपने घर आया हूँ

किन बाज़ारों से गुज़रा हूँ

हर चेहरा था पत्थर का

हर दूकान थी शीशे की

हर दीवार से टकराया हूँ

अब अपने ज़ख़्मों को गिनता हूँ

और वो चोटें कहाँ छुपी बैठी हैं

जिन का लहू

अंदर ही अंदर बहता है

इक कुर्सी पर बैठा

दीवार-ओ-दर को तकते

इक काग़ज़ पर सहरा सहरा लिखते

मैं अपने ही अंदर

चलते चलते थक जाता हूँ...!

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In Hindi By Famous Poet Mushaf Iqbal Tausifi. is written by Mushaf Iqbal Tausifi. Complete Poem in Hindi by Mushaf Iqbal Tausifi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.