जो बीती है जो बीतेगी सब अफ़्साने लगे हम को
जो बीती है जो बीतेगी सब अफ़्साने लगे हम को
उसे देखा तो अपने ख़्वाब ही सच्चे लगे हम को
उन्हें देखा तो जैसे पर-शिकस्ता कोई ताइर हो
वो अपनी डार से बिछड़े थके हारे लगे हम को
बहुत नाराज़ थे ख़ुद से किसी से कुछ नहीं बोले
वो इक कोने में यूँ बैठे हुए अच्छे लगे हम को
समझते ही न थे समझाया उन को रास्ता दिल का
कई नक़्शों को फैलाया कई घंटे लगे हम को
वही अफ़्साने दुनिया के अब उन से हम को क्या लेना
कभी उकता गए उन से कभी अच्छे लगे हम को
ज़रा हट कर जो अपने-आप को कुछ दूर से देखा
तो जिन बातों पे इतना रोए थे क़िस्से लगे हम को
उन्हें दुनिया का ऐसा मोह सोचो तो हँसी आए
वो सत्तर साल के होंगे मगर बच्चे लगे हम को
बचा कर लाए इस तन्हाई को हम भीड़ से 'मुसहफ़'
फिर इक रिक्शे में बैठे और बड़े धक्के लगे हम को
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