अपनी ही आवारगी से डर गए
अपनी ही आवारगी से डर गए
बस में बैठे और अपने घर गए
सारी बस्ती रात भर सोई नहीं
आसमाँ की सम्त कुछ पत्थर गए
सब तमाशा सारी दुनिया देख ली
उस गली से हो के अपने घर गए
बीच में जब आ गई दीवार-ए-जिस्म
अपने साए से भी हम बच कर गए
और क्या लोगे हमारा इम्तिहाँ
ज़िंदगी दी थी सौ वो भी कर गए
आप ने रक्खा मिरी पलकों पे हाथ
मेरा सीना मोतियों से भर गए
कुछ ख़रीदा हम ने देखो कुछ नहीं
हम भी इस बाज़ार से हो कर गए
'मुसहफ़' उस को बेवफ़ा कहते हो तुम
और जो इल्ज़ाम उस के सर गए
(414) Peoples Rate This