अपना शहकार अभी ऐ मिरे बुत-गर न बना
अपना शहकार अभी ऐ मिरे बुत-गर न बना
दिल धड़कता है मिरा तू मुझे पत्थर न बना
क़ैद-ए-आवारगी-ए-जाँ ही बहुत है मुझ को
एक दीवार मिरी रूह के अंदर न बना
आती जाती हुई साँसों पे लकीरें मत खींच
मेरी तस्वीर मुझे पास बिठा कर न बना
वो घरौंदे तिरे बचपन में भी ढह देती थी
अब तो वो खेल की बातें भी नहीं घर न बना
इक तिरा ध्यान जो टूटेगा बिखर जाऊँगा
मुझ को इक लहर पे बहने दे समुंदर न बना
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