कनार-ए-आब हवा जब भी सनसनाती है
नदी में चुपके से इक चीख़ डूब जाती है
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(375) Peoples Rate This
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ
जिसे मैं छू नहीं सकता दिखाई क्यूँ वो देता है
इसी उमीद पे जलती हैं दश्त दश्त आँखें
किसी को क़िस्सा-ए-पाकी-ए-चश्म याद नहीं
मिरे बच्चे तिरा बचपन तो मैं ने बेच डाला
मैं मुन्हरिफ़ था जिस से हर्फ़-ए-इंहिराफ की तरह
उसी ने हिजरतें कुछ और भी बिताई थीं
बदन के दीवार-ओ-दर में इक शय सी मर गई है
अज़ाबों से टपकती ये छतें बरसों चलेंगी
गुज़रते पत्तों की चाप होगी तुम्हारे सेहन-ए-अना के अंदर
है वहम जैसे कोई नक़्श ये दुहाई दे
हुसैन ही था जो प्यासा उठा फ़ुरात से वो