हमारे बीच में इक और शख़्स होना था
जो लड़ पड़े तो कोई भी नहीं मनाने का
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
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जिसे मैं छू नहीं सकता दिखाई क्यूँ वो देता है
मैं संग-ए-रह हूँ तो ठोकर की ज़द पे आऊँगा
ज़रा सी देर जो ख़ौफ़-ए-दवाम ख़त्म हुआ
जिस्म अपना है कोई और न साया अपना
देख वो दश्त की दीवार है सब का मक़्तल
घिरा हूँ दो क़ातिलों की ज़द में वजूद मेरा न बच सकेगा
फ़ैसला थे वक़्त का फिर बे-असर कैसे हुए
किसी को क़िस्सा-ए-पाकी-ए-चश्म याद नहीं
हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी
बदन के दीवार-ओ-दर में इक शय सी मर गई है
मैं आँधी में रेज़ा रेज़ा इक फूल चुन रहा हूँ
मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक दे