ज़रा सी बात पे नाराज़गी अगर है यही
ज़रा सी बात पे नाराज़गी अगर है यही
तो फिर निभेगी कहाँ दोस्ती अगर है यही
तुम्हें दुआ भी हम आसूदगी की कैसे दें
जो हम ने देखी है आसूदगी अगर है यही
हमें बिखरना तो है कल नहीं तो आज सही
हमारा क्या है तुम्हारी ख़ुशी अगर है यही
अभी न-जाने हमें कितने दोस्त खोने पड़ें
हमारी बातों में बे-साख़्तगी अगर है यही
मैं दिल में रखता नहीं मुँह पे साफ़ कहता हूँ
कमी ये मुझ में है बे-शक कमी अगर है यही
जो राह भटकूँ तो उस की गली में आ निकलूँ
खुशा-नसीब मिरी गुमरही अगर है यही
मिसाल देनी तो अपनी ही ज़ात की देनी
तो फिर ग़ुरूर है क्या आजिज़ी अगर है यही
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