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उम्र भर आँखों का दरवाज़ा खुला रहना ही था - मुर्तज़ा बिरलास कविता - Darsaal

उम्र भर आँखों का दरवाज़ा खुला रहना ही था

उम्र भर आँखों का दरवाज़ा खुला रहना ही था

कब पलट आए कोई धड़का लगा रहना ही था

जब ख़ुलूस-ए-दिल न शामिल हो तो फिर कैसा मिलाप

साथ उठते बैठते भी मसअला रहना ही था

चाहे हम कोई जतन करते मगर होना था क्या

बे-सबब था जो ख़फ़ा उस को ख़फ़ा रहना ही था

ख़ामुशी से भी मिरे दिल में कसक रहनी ही थी

और कह कर भी बहुत कुछ बिन कहा रहना ही था

अपना रस्ता छोड़ के जो चल पड़ा औरों के साथ

वो अगर रस्ता भटकता रह गया रहना ही था

रंग भी आख़िर उतरने में तो कुछ लेता है वक़्त

हुस्न आख़िर हुस्न था जिस का नशा रहना ही था

कुछ नहीं तो क्यूँ नहीं कुछ भी बिना-ए-इख़्तिलाफ़

इस लिए भी उस को हम से कुछ गिला रहना ही था

पासदारी जब क़बीले के रिवाजों की न की

फिर तो ज़ाहिर है क़बीले से जुदा रहना ही था

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In Hindi By Famous Poet Murtaza Birlas. is written by Murtaza Birlas. Complete Poem in Hindi by Murtaza Birlas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.