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नाम भी अच्छा सा था चेहरा भी था महताब सा - मुर्तज़ा बिरलास कविता - Darsaal

नाम भी अच्छा सा था चेहरा भी था महताब सा

नाम भी अच्छा सा था चेहरा भी था महताब सा

हाँ हमें कुछ याद होता है मगर कुछ ख़्वाब सा

ये मिरे सीने में दिल रक्खा है या कोई चकोर

चाँदनी रातों में क्यूँ रहता हूँ मैं बेताब सा

हो गया किस ज़िक्र से ये मुर्तइश सारा वजूद

तार-ए-साज़-ए-दिल पे आख़िर क्या लगा मिज़राब सा

कुछ किताबें और क़लम काग़ज़ के कुछ पुर्ज़ों पे शेर

मेरे घर में है यही बस क़ीमती अस्बाब सा

पाँव रखते ही बहा कर ले गया सैलाब में

दूर से लगता था जो दरिया हमें पायाब सा

इस तरह के कुछ हवारी साथ ईसा के भी थे

जिस तरह है गिर्द मेरे हल्क़ा-ए-अहबाब सा

आसमाँ पर आँख सूरज की न बुझ जाए कहीं

है ज़मीं पर रौशनी का इस क़दर सैलाब सा

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In Hindi By Famous Poet Murtaza Birlas. is written by Murtaza Birlas. Complete Poem in Hindi by Murtaza Birlas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.