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नहर जिस लश्कर की निगरानी में तब थी अब भी है - मुर्तज़ा बिरलास कविता - Darsaal

नहर जिस लश्कर की निगरानी में तब थी अब भी है

नहर जिस लश्कर की निगरानी में तब थी अब भी है

ख़ेमे वालों की जो बस्ती तिश्ना-लब थी अब भी है

उड़ रहे हैं वक़्त की रफ़्तार से मग़रिब की सम्त

वक़्त-ए-आग़ाज़-ए-सफ़र जो तीरा शब थी अब भी है

वक़्त जैसे एक ही साअत पे आ के रुक गया

पहले जिस शिद्दत से जो दिल में तलब थी अब भी है

हम शिकायत आँख की पलकों से करते किस तरह

दास्तान-ए-ज़ुल्म वर्ना याद सब थी अब भी है

हुस्न में फ़ितरी हिजाबाना रविश अब हो न हो

इश्क़ के मस्लक में जो हद्द-ए-अदब थी अब भी है

रोज़ ओ शब बदलेंगे अपने किस तरह आए यक़ीं

सूरत-ए-हालात जो पहले अजब थी अब भी है

हैं बक़ा के वसवसे में इब्तिदा से मुब्तला

दिल में इक तशवीश सी जो बे-सबब थी अब भी है

नाम इस का आमरियत हो कि हो जम्हूरियत

मुंसलिक फ़िरऔनियत मसनद से तब थी अब भी है

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In Hindi By Famous Poet Murtaza Birlas. is written by Murtaza Birlas. Complete Poem in Hindi by Murtaza Birlas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.