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मौज-दर-मौज नज़र आता था सैलाब मुझे - मुर्तज़ा बिरलास कविता - Darsaal

मौज-दर-मौज नज़र आता था सैलाब मुझे

मौज-दर-मौज नज़र आता था सैलाब मुझे

पाँव डाला तो ये दरिया मिला पायाब मुझे

बुत तो दुनिया ने ब-हर-गाम तराशे लेकिन

सर झुकाने के न आए कभी आदाब मुझे

शिद्दत-ए-कर्ब से कुम्हला गए चेहरे के ख़ुतूत

अब न पहचान सकेंगे मिरे अहबाब मुझे

एक साया कि मुझे चैन से सोने भी न दे

एक आवाज़ कि करती रहे बेताब मुझे

जिस की ख़्वाहिश में किसी बात की ख़्वाहिश न रहे

ऐसी जन्नत के दिखाए न कोई ख़्वाब मुझे

वुसअ'तें दामन-ए-सहरा को भी बख़्शी होतीं

तू ने बख़्शी थी अगर फ़ितरत-ए-सीमाब मुझे

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In Hindi By Famous Poet Murtaza Birlas. is written by Murtaza Birlas. Complete Poem in Hindi by Murtaza Birlas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.