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हम कि तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कर चले आबरू-ए-जुनूँ कुछ सिवा कर चले - मुर्तज़ा बिरलास कविता - Darsaal

हम कि तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कर चले आबरू-ए-जुनूँ कुछ सिवा कर चले

हम कि तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कर चले आबरू-ए-जुनूँ कुछ सिवा कर चले

ख़ुद तो जैसे कटी ज़िंदगी काट ली हाँ नए दौर की इब्तिदा कर चले

ज़र्द सूरज की मशअ'ल भी कजला गई चाँद तारों को भी नींद सी आ गई

अब किसी को अगर रौशनी चाहिए अपनी पलकों पे शमएँ जला कर चले

हाल अपना हर इक से छुपाते रहे ज़ख़्म खाते रहे मुस्कुराते रहे

तेरी तश्हीर हम ने गवारा न की दर्द-ए-दिल हम तिरा हक़ अदा कर चले

लाख इल्ज़ाम पर हम को इल्ज़ाम दो और तर-दामनी के फ़साने कहो

तुम में ऐसा भी कोई तो हो दोस्तो दो-क़दम ही सही सर उठा कर चले

चोट जो भी पड़ी ठीक दिल पर पड़ी उस पे भी हम ने तर्क-ए-तलब तो न की

हम तो मिट के भी ऐ गर्दिश-ए-आसमाँ तेरे शाने से शाना मिला कर चले

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In Hindi By Famous Poet Murtaza Birlas. is written by Murtaza Birlas. Complete Poem in Hindi by Murtaza Birlas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.