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इक याद थी किसी की जो बादल बनी रही - मुर्तज़ा बिरलास कविता - Darsaal

इक याद थी किसी की जो बादल बनी रही

इक याद थी किसी की जो बादल बनी रही

सहरा-नसीब के लिए छाँव घनी रही

वो नक़्श हूँ जो बन के भी अब तक न बन सका

वो बात हूँ जो कह के भी नाग़ुफ़्तनी रही

पत्थर का बुत, समझ कि ये किस शय को छू लिया

बरसों तमाम जिस्म में इक सनसनी रही

इस जान-ए-गुल को देखते कैसे कि आज तक

इक रंग-ओ-बू की सामने चादर तनी रही

वो धुँद थी कि कुछ भी दिखाई न दे सका

वो हब्स था कि कैफ़ियत-ए-जांकनी रही

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In Hindi By Famous Poet Murtaza Birlas. is written by Murtaza Birlas. Complete Poem in Hindi by Murtaza Birlas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.