Ghazals of Murtaza Birlas (page 1)
नाम | मुर्तज़ा बिरलास |
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अंग्रेज़ी नाम | Murtaza Birlas |
जन्म की तारीख | 1934 |
ज़रा सी बात पे नाराज़गी अगर है यही
ये मरहले भी मोहब्बत के बाब में आए
वैसे तुम्हें तो आता नज़र सब दुरुस्त है
वअ'दा जो था निबाह का तुम ने वफ़ा नहीं किया
उम्र भर आँखों का दरवाज़ा खुला रहना ही था
तुम इक ऐसे शख़्स को पहचानते हो या नहीं
तुम अगर चाहो कभी बिफरा समुंदर देखना
सारे ज़ालिम अगर सफ़-ब-सफ़ हो गए
साक़ी-गरी का फ़र्ज़ अदा कर दिया गया
सादगी यूँ आज़माई जाएगी
सदा ये किस की है जो दूर से बुलाए मुझे
नींद भी तेरे बिना अब तो सज़ा लगती है
नाम भी अच्छा सा था चेहरा भी था महताब सा
नहर जिस लश्कर की निगरानी में तब थी अब भी है
मिलते ही ख़ुद को आप से वाबस्ता कह दिया
मौज-दर-मौज नज़र आता था सैलाब मुझे
किस किस का मुँह बंद करोगे किस किस को समझाओगे
काश बादल की तरह प्यार का साया होता
जुनूँ का ज़िक्र मिरा आम हो गया तो क्या
जीते-जी मेरे हर इक मुझ पे ही तन्क़ीद करे
जिस को देखो ज़र्द चेहरा आँख पथराई हुई
जब ज़रा हुई आहट शाख़ पर हिले पत्ते
हम कि तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कर चले आबरू-ए-जुनूँ कुछ सिवा कर चले
हम ही नहीं जो तेरी तलब में डेरे डेरे फिरते हैं
हम-ज़मीरों से जो भटकाए वो एज़ाज़ न दे
हमारे क़ौल ओ अमल में तज़ाद कितना है
ग़ैर के आगे ये सर ख़म देखिए कब तक रहे
इक याद थी किसी की जो बादल बनी रही
इक ख़्वाब लड़कपन में जो देखा था वो तुम थे
इक बर्ग-ए-सब्ज़ शाख़ से कर के जुदा भी देख