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वक़्त अच्छा जो मिरा था पहले - मुर्ली धर शर्मा तालिब कविता - Darsaal

वक़्त अच्छा जो मिरा था पहले

वक़्त अच्छा जो मिरा था पहले

हर नज़र को मैं भला था पहले

अब कहीं जा के फ़साना समझा

उस के मुँह से न सुना था पहले

सिर्फ़ हम ही न हुए थे पागल

कुछ तो उस को भी हुआ था पहले

है ज़मीं-बोस इमारत इतनी

इस का सीना भी तना था पहले

ज़िंदगी खा के थपेड़े बिगड़ी

मैं तो इतना न बुरा था पहले

बा'द में दिल से गई शीरीनी

ज़हर दुनिया ने भरा था पहले

धूल जब तक न हटी आँखों से

साफ़ 'तालिब' न दिखा था पहले

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In Hindi By Famous Poet Murlidhar Sharma Talib. is written by Murlidhar Sharma Talib. Complete Poem in Hindi by Murlidhar Sharma Talib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.