शब-ए-हिज्र में याद आना किसी का
शब-ए-हिज्र में याद आना किसी का
सताए हुए को सताना किसी का
कभी प्यार की बातें वो चुपके चुपके
कभी नाज़ से रूठ जाना किसी का
वो भोली अदाएँ न क्यूँ याद आएँ
लड़कपन में था क्या ज़माना किसी का
कभी थी वो ग़ुस्से की चितवन क़यामत
कभी आजिज़ी से मनाना किसी का
वो दिल बन के दाम-ए-मोहब्बत में आया
कि ज़ुल्फ़ों में था आशियाना किसी का
नज़र लग गई मेरे दुश्मन की मुझ को
क़यामत हुआ रूठ जाना किसी का
खिलाएगा गुल रंग लाएगा ऐ 'शाद'
तुझे देख कर मुस्कुराना किसी का
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