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पज़मुर्दा दिल है वस्ल के अरमाँ को क्या हुआ - मुर्ली धर शाद कविता - Darsaal

पज़मुर्दा दिल है वस्ल के अरमाँ को क्या हुआ

पज़मुर्दा दिल है वस्ल के अरमाँ को क्या हुआ

रोता हूँ मैं बहार-ए-गुलिस्ताँ को क्या हुआ

कब तक उड़ाऊँ हिज्र में दामन की धज्जियाँ

ऐ सुब्ह तेरे चाक-गरेबाँ को क्या हुआ

बुलबुल के चहचहे हैं न कोई शगुफ़्ता फूल

ऐ बाग़बाँ बहार-ए-गुलिस्ताँ को क्या हुआ

दिल चीर कर दिखाने की शय हो तो मैं दिखाऊँ

फ़ुर्क़त की रात सदमा मिरी जाँ को क्या हुआ

दुश्मन का सोग साफ़ है चेहरे से आश्कार

आईना देख ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को क्या हुआ

बुलबुल है चुप फ़सुर्दा चमन लुट गई बहार

मैं ने किया जो चाक-ए-गरेबाँ को क्या हुआ

महव-ए-जमाल हो गए आईना देख कर

तुम कह रहे थे नर्गिस-ए-हैराँ को क्या हुआ

मैं उन को इस सवाल का अब क्या जवाब दूँ

दामन को आस्तीं को गरेबाँ को क्या हुआ

काँटे हज़ार दिल में हैं किस किस को रोइए

फूलों को बुलबुलों को गुलिस्ताँ को क्या हुआ

दिल टुकड़े हो के सब्र का दामन हुआ है चाक

किस से कहूँ कि चाक-गरेबाँ को क्या हुआ

उलझा हुआ है 'शाद' का दिल बाल क्या बनें

वो कह रहे हैं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को क्या हुआ

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In Hindi By Famous Poet Murli Dhar Shad. is written by Murli Dhar Shad. Complete Poem in Hindi by Murli Dhar Shad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.