दोस्त बन कर वो दिलसिताँ न रहा
दोस्त बन कर वो दिलसिताँ न रहा
चार दिन भी तो मेहरबाँ न रहा
दिल के दम से था हसरतों का हुजूम
अब वो सालार-ए-कारवाँ न रहा
क्या हसीनों ने ज़ुल्म छोड़ दिया
दिल में क्यूँ दर्द का निशाँ न रहा
का'बे में दैर में कलीसा में
ज़िक्र उस का कहाँ कहाँ न रहा
दिल में मेरे वो छुप के बैठ गए
जब कोई उन का पासबाँ न रहा
मुझ से गर रूठ कर गया कोई
बेवफ़ाई का भी गुमाँ न रहा
आप के ज़ुल्म भी ख़ुशी से सहे
'शाद' किस रोज़ शादमाँ न रहा
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