गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
बे-निशाँ हो कर निकालेंगे निशान-ए-मय-फ़रोश
सज्दे करते हैं ख़ुम-ए-मय को वुफ़ूर-ए-नश्शा में
सूरत मीना-ए-मय मद्दाह शान-ए-मय-फ़रोश
जाम-ओ-मीना-ओ-सुराही-ओ-सुबू से बे-गुमाँ
साक़ी-ए-मुशफ़िक़ पे होता है गुमान-ए-मय-फ़रोश
भट्टियों पर जा के पूछेंगे बहार आने तो दो
आलम-ए-मस्ती में मस्तों से बयान-ए-मय-फ़रोश
शीशा-ओ-जाम-ओ-सुराही-ओ-सुबू क्या माल हैं
बख़्श देंगे जोश-ए-मस्ती में दुकान-ए-मय-फ़रोश
मय-कदे में दुख़्त-ए-रज़ को ला बिठाएँगे ज़रूर
पहलू-ए-मीना-ए-दिल में मेहमान-ए-मय-फ़रोश
जाम आँखें हैं तो बादा अश्क है शीशा है दिल
देख ओ मय-नोश मैं भी हूँ लबान-ए-मय-फ़रोश
किस क़दर चमका हुआ है बादा-ए-गुलगूँ का दौर
एक आलम आज-कल है मेहमान-ए-मय-फ़रोश
मैं भी हूँ इक साक़ी-ए-मय-नोश तेरे दौर में
कफ़्श-बर्दार-ए-शरीक-ए-ख़ादिमान-ए-मय-फ़रोश
ख़ुम के ख़ुम कर दूँ तही दम-भर में वो मय-नोश हूँ
ऐ 'शगुफ़्ता' हाथ आए गर दुकान-ए-मय-फ़रोश
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