जो तेरे गुनह बख़्शेगा वाइ'ज़ वो मिरे भी
क्या तेरा ख़ुदा और है बंदे का ख़ुदा और
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कहें क्या कि क्या क्या सितम देखते हैं
वस्ल से तब भरे हमारा पेट
हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली
दिल तंग उस में रंज-ओ-अलम शोर-ओ-शर हों जम्अ'
शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का
हिदायत शैख़ करते थे बहुत बहर-ए-नमाज़ अक्सर
न लड़ाओ नज़र रक़ीबों से
ईजाद ग़म हुआ दिल-ए-मुज़्तर के वास्ते
ज़ीनत-ए-उनवाँ है मज़मूँ आलम-ए-तौहीद का
होश-ओ-शकेब-ओ-ताब-ओ-सब्र-ओ-क़रार पांचों
क़ातिल के कूचे में हमा-तन जाऊँ बन के पाँव