वस्ल से तब भरे हमारा पेट
पेट से जब मिले तुम्हारा पेट
थक गए हम तो भरते भरते इसे
खाते खाते कभी न हारा पेट
साफ़ दरिया-ए-हुस्न का है पाट
कैसा दिलचस्प है तुम्हारा पेट
नाफ़ तेरी है यार नाफ़ा-ए-मुश्क
और फ़ज़ा-ए-ख़ुतन है सारा पेट
हुआ नज़्ज़ारा-ए-शिकम न नसीब
'सेहर' हर-चंद हम ने मारा पेट