सुब्हा से मतलब न कुछ ज़ुन्नार से

सुब्हा से मतलब न कुछ ज़ुन्नार से

हैं जुदा हम काफ़िर ओ दीं-दार से

इश्क़ है उस अबरू-ए-ख़मदार से

काटूँगा इक दिन गला तलवार से

दिल मिरा अटका है चश्म-ए-यार से

है मोहब्बत मर्दुम-ए-बीमार से

यूँ एवज़ लूँ जी में है अग़्यार से

घर जला दूँ आह-ए-आतिश-बार से

हैं अयाँ कुछ इश्क़ के आसार से

शोले उठते हैं दिल-अफ़गार से

क्यूँ न दिल अपना नज़ार-ओ-ज़ार हो

कुछ नज़र आते हो तुम बेज़ार से

रश्क से दिल में न क्यूँ जल जाए शम्अ

लौ निकलती है तिरे रुख़्सार से

हिज्र में हो क्यूँ न लज़्ज़त वस्ल की

है मज़ा इंकार में इक़रार से

कूचा-ए-काकुल में खो कर नक़्द-ए-दिल

मोल सौदा लाए हम बाज़ार से

झाँके रौज़न से जो तुझ को रख़्ना-गर

फोड़ डालूँ सर को मैं दीवार से

जान आफ़त में पड़ी है ऐ तबीब

मौत बेहतर हिज्र के आज़ार से

हर क़दम पर शोर-ए-महशर है बपा

पिसते हैं दिल आप की रफ़्तार से

ख़िज़्र ला कर दें अगर आब-ए-बक़ा

मैं न बदलूँ शर्बत-ए-दीदार से

तेग़-ए-अबरू का जो बोसा दे तो दे

वर्ना ज़ालिम क़त्ल कर तलवार से

ख़िलअत-ए-उर्यानी और जागीर-ए-दश्त

हम ने पाया इश्क़ की सरकार से

सर्व के चेहरा कमर सीना कहाँ

इस को क्या तश्बीह क़द्द-ए-यार से

हिज्र में जंगल से है गुलशन सिवा

गुल भी मुझ को कम नहीं हैं ख़ार से

जा-ए-आसाइश नहीं है दूसरी

बढ़ के तेरे साया-ए-दीवार से

रोज़ तन्हाई में रहती है यहाँ

गुफ़्तुगू पहरों ख़याल-ए-यार से

ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़ चश्म-ओ-अबरू ख़ाल-ओ-ख़त

दिल नहीं बचता इन्हीं दो-चार से

बोसा अब क़ंद-ए-मुकर्रर हो गया

दूनी लज़्ज़त हो गई तकरार से

शर्त में बोसों की भी किया लुत्फ़ है

जीत में कम-तर मज़ा है हार से

एक गुल-रू पर हुआ दिल दाग़ दाग़

फूल लाए आज हम गुलज़ार से

कोई मय-कश फिर न बैठा एक दम

मैं जो उठ्ठा ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार से

बुलबुलें उस रश्क-ए-गुल के हिज्र में

नोचती हैं अपने पर मिन्क़ार से

'सेहर' भेजेंगे ग़ज़ल ये यार को

शौक़ है उस को मिरे अशआर से

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In Hindi By Famous Poet Munshi Debi Parshad Sahar Badayuni. is written by Munshi Debi Parshad Sahar Badayuni. Complete Poem in Hindi by Munshi Debi Parshad Sahar Badayuni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.