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कुछ ग़रज़ वज्ह मुद्दआ बाइस - मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी कविता - Darsaal

कुछ ग़रज़ वज्ह मुद्दआ बाइस

कुछ ग़रज़ वज्ह मुद्दआ बाइस

क्यूँ ख़फ़ा हो गए हो क्या बाइस

मुझ से रूठे हो क्यूँ बिला बाइस

क्या ख़ता क्या क़ुसूर क्या बाइस

अब खुला ये कि जान जाने का

था सबब दिल ही दिल ही था बाइस

मैं ने छेड़ा था क्यूँ बिगड़ते न वो

ख़फ़गी की हुई ख़ता बाइस

मैं उन्हें चाहूँ वो ये ख़ुद चाहें

कोई ऐसा हो या ख़ुदा बाइस

नहीं मिलते न मिलिए बिस्मिल्लाह

पर बता दीजिए ज़रा बाइस

आज क्यूँ वो बिगड़ गए हम से

या इलाही न कुछ खुला बाइस

मर गए देख हम तिरा अंदाज़

है फ़ज़ा की तिरी अदा बाइस

जब कहा मैं ने आइए मिरे पास

दो घड़ी के लिए कहा बाइस

तुम हसीं हो तो चाहते हैं तुम्हें

यही बाइस है और क्या बाइस

कर लिया कैसा आप को तस्ख़ीर

'सेहर' हूँ वर्ना और क्या बाइस

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In Hindi By Famous Poet Munshi Debi Parshad Sahar Badayuni. is written by Munshi Debi Parshad Sahar Badayuni. Complete Poem in Hindi by Munshi Debi Parshad Sahar Badayuni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.