ईजाद ग़म हुआ दिल-ए-मुज़्तर के वास्ते
ईजाद ग़म हुआ दिल-ए-मुज़्तर के वास्ते
पैदा जुनूँ हुआ है मिरे सर के वास्ते
करते हो फ़िक्र ग़ाफ़िलो क्या घर के वास्ते
दुनिया में सब मुक़ीम हैं दम भर के वास्ते
हर शय में जो कि देखते हैं जल्वा दोस्त का
वो लोग सज्दा करते हैं पत्थर के वास्ते
उस बुत ने एक बात न मानी शब-ए-विसाल
लाखों दिए ख़ुदा ओ पयम्बर के वास्ते
सुन कर पयाम-ए-वस्ल मैं क़ासिद से जी उठा
है मोजज़ा ज़रूर पयम्बर के वास्ते
मिज़्गाँ को तेरी हम ने जगह अपने दिल में दी
ज़ेबा ये म्यान है इसी ख़ंजर के वास्ते
लिखता हूँ उस परी की सिफ़त चश्म-ए-शोख़ की
तार-ए-निगाह-ए-हूर हो मिस्तर के वास्ते
बालिश की जा है मुझ को तिरा संग-ए-आस्ताँ
काफ़ी है ख़ाक-ए-दर मरे बिस्तर के वास्ते
जाता हूँ चीन काकुल-ए-अम्बर-फ़िशाँ को मैं
सौदा ख़रीदता है मुझे सर के वास्ते
जितने थे ज़ुल्म सब वो जफ़ा-कार कर चुका
बाक़ी रहे न चर्ख़-ए-सितमगर के वास्ते
करता हूँ रोज़-ए-हिज्र मैं तदबीरें दोस्तो
क्या क्या तसल्ली-ए-दिल-ए-मुज़्तर के वास्ते
साक़ी शराब-ए-अश्क है याँ जाम-ए-चश्म में
एहसान उठाएँ क्यूँ मय ओ साग़र के वास्ते
ऐ 'सेहर' क़द्र-दाँ जो न हो कोई शेर का
तो ज़िंदगी है मौत सुखनवर के वास्ते
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