होश-ओ-शकेब-ओ-ताब-ओ-सब्र-ओ-क़रार पांचों
होश-ओ-शकेब-ओ-ताब-ओ-सब्र-ओ-क़रार पांचों
क़ुर्बान कर चुका हूँ मैं तुझ पे यार पांचों
इक दर्द-ए-हिज्र से बस ये पाँच आरिज़े हैं
बे-होशी बे-क़रारी ग़श तप बुख़ार पांचों
मुतरिब पिसर के ग़म में भाते हैं किस के दिल को
गोरी एेमन अलब्बा देस और मलार पांचों
ईमान-ओ-दीन-ओ-माल-ओ-दिल और नक़्द-ए-जाँ भी
मैं कर चुका हूँ प्यारे तुझ पर निसार पांचों
गर तू क़सम भी खाए झूटे हैं मेरे प्यारे
पैमान-ओ-अहद-ओ-वादा क़ौल-ओ-क़रार पांचों
करते हैं क़त्ल-ए-आलम ज़ालिम ये उज़्व तेरे
मिज़्गाँ-ओ-चश्म-ओ-अबरू ज़ुल्फ़-ओ-अज़ार पांचों
कोहसार-ओ-दश्त-ओ-दरिया गुलज़ार-ओ-बज़्म-ए-इशरत
हैं ख़ार साँ नज़र में बे-रू-ए-यार पांचों
इस तरह में ग़ज़ल का लिखना है ग़ैर-मुमकिन
ऐ 'सेहर' कोई बाँधे गो अब हज़ार पांचों
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