दिल तंग उस में रंज-ओ-अलम शोर-ओ-शर हों जम्अ'
दिल तंग उस में रंज-ओ-अलम शोर-ओ-शर हों जम्अ'
चैन आए ख़ाक घर में जब इतने ज़रर हों जम्अ'
दिल में जो फ़र्क़ डाल दिया है रक़ीब ने
हो जाए बर-तरफ़ कहीं हम तुम अगर हों जम्अ'
जिस ने किया है क़त्ल वही आए नाअ'श पर
क्या फ़ाएदा है यूँ जो हज़ारों बशर हों जम्अ'
आए न काम एक भी बे-यारी-ए-नसीब
गो ज़ात में किसी के हज़ारों हुनर हों जम्अ'
जाता है यार माँगें निशानी तो किस तरह
अपने कहीं हवास भी वक़्त-ए-सफ़र हों जम्अ'
लिक्खी ग़ज़ल तो ख़ूब मगर ये ज़रूर है
पढ़ना तब इस को 'सेहर' जब अहल-ए-हुनर हों जम्अ
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