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चमके हैं सब के बख़्त तिरी जल्वा-गाह में - मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी कविता - Darsaal

चमके हैं सब के बख़्त तिरी जल्वा-गाह में

चमके हैं सब के बख़्त तिरी जल्वा-गाह में

वाँ कुछ नहीं तमीज़ सफ़ेद-ओ-सियाह में

रहमत झलक रही है ग़ज़ब की निगाह में

दिल पा रहा है लज़्ज़त-ए-ताअ'त गुनाह में

हैं जब तुझी पे शैख़-ओ-बरहमन मिटे हुए

फिर फ़र्क़ क्या है बुत-कदा-ओ-ख़ानक़ाह में

पहले वही बहिश्त में जाए तो लुत्फ़ है

सब्क़त हुई है जिस की तरफ़ से गुनाह में

बंदे हूँ ताकि ख़िलअ'त-ए-रहमत के मुस्तहिक़

भर दी है कूट कूट के लज़्ज़त गुनाह में

तासीर-ए-आह-ओ-नाला तो मा'लूम हाँ मगर

दिल का बुख़ार ख़ूब निकलता है आह में

'मुश्ताक़' आए राह पे वो शोख़ या न आए

अपनी तरफ़ से फ़र्क़ न आए निबाह में

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In Hindi By Famous Poet Munshi Bihari Lal Mushtaq Dehlwi. is written by Munshi Bihari Lal Mushtaq Dehlwi. Complete Poem in Hindi by Munshi Bihari Lal Mushtaq Dehlwi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.